मदकु द्वीप
श्री हरिहर क्षेत्र केदार द्वीप मदकू (भाग-एक)
#शिवनाथ नदी की धारा के दो भागों में विभक्त होने से नैसर्गिक सौन्दर्य से परिपूर्ण प्राकृतिक द्वीप का निर्माण हुआ।रमणीयता एवं अतीव सम्मोहक विशेषताओ से समृद्ध श्री हरिहर क्षेत्र केदार द्वीप मदकू अपने पुरावैभव से भी परिपूर्ण है।पुरे द्वीप क्षेत्र में जहाँ सिरहुट,अकोल के वृक्ष बहुतायत से है वही वरूण जैसी दुर्लभ वनौषधि के वृक्षों सहित अनेक वनौषधि वृक्ष यहाँ है।विशेष दृष्टव है कि द्वीप क्षेत्र में कई ऐसे दुर्लभ वृक्ष है जो सिर्फ द्वीप के अंदर ही बहुतायत से है किन्तु द्वीप से लगे गांवो में इन वृक्षों की प्रजाति नहीं पाई जाती है।
वर्ष 2011 में हुए पुरा-उत्खनन से प्राप्त मंदिरों की श्रृंखला ने इस द्वीप की प्राचीनता संबंधी सारे प्रश्न चिन्हों को एक झटके में हटा दिया। हालाँकि द्वीप में भगवान धूमनाथ,भगवान नृत्य गणेश एवं शिव की प्राचीन प्रतिमाएँ स्थानीय ग्रामीणों के आस्था के केन्द्र के रूप में पूजे जा रहे थे।वहीं पूर्व में द्वीप से प्राप्त दो शिलालेखों से इस स्थान के पुरातात्विक महत्व का स्थान होने की पुष्टि होती है। वर्ष 1959-60 के इंडियन एपिग्राफी प्रतिवेदन की प्रविष्टियों में मदकू घाट (द्वीप) से प्राप्त दो प्राचीन शिलालेखों का उल्लेख है। शिलालेखों में प्रथम शिलालेख लगभग 3री सदी ईसवी का ब्राह्मी शिलालेख है, जिसमें किसी अक्षयनिधी का उल्लेख है । यह शिलालेख घिस गया है । दूसरा शिलालेख शंखलिपि के अक्षरों से सुसज्जित है। दोनों शिलालेख तत्कालीन साऊथ ईस्टर्न आर्कियोलॉजिकल मंडल के कार्यालय विशाखापट्टनम में रखा गया था,किन्तु कुछ प्रशासनिक परिवर्तनों के पश्चात उक्त शिलालेखों के वर्तमान में चेन्नई म्यूजियम में रखे होने की भी जानकारी मिली है। इस द्वीप से प्रागैतिहासिक काल के लघु पाषाण उपकरण भी प्राप्त हुए है । जिससे यह प्रमाणित होता है कि अति प्राचीनकाल से इस द्वीप खंड पर मानव का निवास एवं संचरण होता आया है ।द्वीप से प्राप्त तीसरी एवं पांचवी सदी के शिलालेख के पुरा प्रमाणो के पश्चात 10-11 वीं सदी के मंदिरों की श्रृंखला प्राप्त हुई है।किन्तु 5 वीं सदी से 10 वीं सदी के मध्य के 500 वर्षों के इस द्वीप का क्या स्वरूप या इतिहास रहा होगा यह रहस्य बरकरार है और यह रहस्य शोध का विषय है।
सामान्य रूप से हम श्री हरिहर क्षेत्र केदार द्वीप मदकू की विशेषताओं को निम्न बिन्दुओ में रेखांकित कर सकते हैं।
१. पुरातन स्थान .. सदियों पुराने साक्ष्य मिले हैं |
२. स्मार्तलिंग .. भारत में एकमात्र
३. माण्डूक्य ऋषि की तप:स्थली
४. पवित्र - जागृत स्थल
५. भगवान राम का आगमन
६. कलचुरी कालीन चतुर्भुजी नृत्य गणेश की दक्षिणावर्त प्रतिमा
७. वर्ष भर होने वाले विभिन्न कार्यक्रम।
#पहुंचने के मार्ग
बिलासपुर -रायपुर राष्ट्रीय मार्ग पर (बिलासपुर से 37 किमी एवं रायपुर से 76 किमी पर स्थित ) बैतलपुर से 4 कि.मी.की दूरी पर स्थित है। पूर्व में द्वीप तक नदी को नाव या पैदल पारकर जाना पड़ता था किन्तु मदकू एवं परसवानी दोनों ओर एनीकट निर्माण हो जाने से बरसात के दिनों को छोड़कर वाहन सहित द्वीप के अंदर जाया जा सकता है।रेल मार्ग से आने वाले निपानिया स्टेशन से (दूरी- 10 किलोमीटर) एवं भाटापारा से ( दूरी-15 किलोमीटर ) कड़ार-परसवानी मार्ग से जा सकते हैं।
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